आत्मनिर्भर
“आत्मनिर्भर”
========
अब वक़्त नहीं है निर्भरता का,
हो जाओ तुम आत्मनिर्भर!
यदि जीवन दीप जलाने हैं..
ऊसर में प्रसून खिलाने हैं,
कुछ छंद नए नित गाने हैं..
जीवन बगिया महकाने है!
फिर आत्मनिर्भर तो होना पड़ेगा !!
आत्मनिर्भर यदि हम होंगे नहीं,
जीवन दृष्टिकोण फिर समझेंगे नहीं !
आत्मनिर्भरता ही कुंजी है..
जो जीवन सफल बनाती है,
निर्भरता का कलंक मिटाती है !
क्षणिक खुशी में बीत रहा पल..
जीवन भर दर्द छलकाती है !
समयबद्ध परिश्रम करने का,
भाग्य अवसर तो समझना होगा !
अब आत्मनिर्भर तो होना पड़ेगा ! !
याद करो उस यौवनपथ का..
स्वाभिमान का जब अनुभव करते!
कुछ धन हासिल करने हेतु,
भांति-भांति से परिश्रम करते !
सत्य संकल्प और मन न्यौछावर,
पतझड़ में भी लगता वसंत था..
जीवन संघर्ष के दुरुह पथ चल,
सबने अपनी मंजिल पाई!
संस्कार वही इन युवावर्ग को..
अब तो है सिखलाना होगा!
आत्मनिर्भर तो होना पड़ेगा !!
घना अंधियारा टल जाएगा,
हौसलों की उड़ान जरूरी है !
वक़्त की सिर्फ आहट समझ लें,
चंद कदमों की दूरी है !
कष्ट उठाकर ही मनुज..
जीवन अनुभव ले पाता है!
तख्त पलट इतिहास लिखना है,
मन को ये समझाना होगा !
आत्मनिर्भर तो होना पड़ेगा !!
सुख सुविधा पर निर्भर खग को,
क्यों पिंजरे में बंद रहना पसंद नहीं!
स्वछंद गगन में हर्षित उड़ान का,
अनुभव तो बतलाना होगा !
आँचल थामे नन्हें हाथों को,
उम्मीद की किरण दिखलाना होगा !
आत्मनिर्भर तो होना पड़ेगा !!
मौलिक एवं स्वरचित
© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )