आत्मनिर्भरता
दहलीज के आधार ,पर स्त्रियों पर
संस्कार के मानक तय हैं समाज के द्वारा ।
अच्छे घर की लड़कियाँ
बसों पर धक्के नहीं खातीं ।
वे आत्मसम्मान के हेतु आवाज नहीं उठातीं
नहीं काटती चक्कर
थाने , कोर्ट-कचहरियों के ।
उनका कोई आत्मसम्मान ही कहाँ होता है ।
पुरुषों के बराबर खड़ी होतीं हैं वो ।
ऐसी स्त्रियों के लज्जा नहीं होती ।
अच्छे घरानों की नहीं होतीं हैं न!
वे जो हंस-हंसकर
पुरुषों से बात करती है न !
न्योता होता है उनके लिए ।
अच्छे घराने की स्त्रियाँ
पराए मर्दों से बात नहीं करतीं ।
इनका धंधा ही यही होता है ।
मुंह ये मुँह अंधेरे उठकर
अपने बच्चों के लिए निकल पड़ती हैं
पर्स टांगे बस स्टॉप की ओर ।
कई नजरें पीछा करती है राह में ।
क्या पता कब इशारा मिल जाए
उन्हें हक़ जमाने का ।
या अवसर मिल जाए कि
वह ऐसी स्त्रियों को दंडित कर सकें ।
जो आत्मनिर्भर होती हैं ,
खड़ी होती हैं पुरुषों के बराबर ।…..
निहारिका सिंह