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5 Feb 2020 · 1 min read

आते हैं खयालों में

आते हैं खयालों में अक्सर मेरे महबूब
मिलते न हक़ीकत में क्योंकर मेरे महबूब

रहना हो गवारा उन्हें मेरे दिल में
ऐ काश हो जाएं कभी बेघर मेरे महबूब

दरिया मेरी आँखों से यह सोंच के बहता है
समझा था वफ़ा के हैं सागर मेरे महबूब

वो मेरे बुरे वक्त की खबर पर नहीं पिघले
मेरा यकीं सलामत कि हैं पत्थर मेरे महबूब

5 Likes · 195 Views
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