आतिशे इश्क जो जलती है तो जल जाने दे
ग़ज़ल – (बह्र – रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ)
आतिशे इश्क जो जलती है तो जल जाने दे।
जो हया की है जमी बर्फ़ पिघल जाने दे।।
प्यार का अब्र है बेताब बरसने दे इसे।
मैं तो मिट्टी हूं मुझे गलना है गल जाने दे।।
प्यार के फूल खिले दिल में महकती साँसें।
दिल का मौसम जो बदलता है बदल जाने दे।।
तूने बरषों से दबा रक्खे हैं जो सीने में।
अब मचलते हैं ये ज़ज़्बात मचल जाने दे।।
शम्अ उल्फत की जलाई है जलाये रखना।
आज परवाने को जलना है तो जल जाने दे।।
आरजू है कि तेरे पहलू में मौत आये अनीस।
निकले बाहों में तेरी दम तो निकल जाने दे।।
– © अनीस शाह “अनीस”