आतंकवाद
आतंकवाद एक खतरा
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ऐ आतंक मेरी बात सुनो ?
कैसे कोहराम मचा रहे हो।
तू भी तो एक इंसान है,
इंसान होके इंसानों को लड़ा रहे हो।
किसी धर्म का तू भी तो इंसान है,
तो धर्म को बदनाम क्यूँ कर रहे हो।
अपने ही भाइयों को मारकर,
विश्व में अपमान हो रहे हो ।
बात किसी मजहब की नहीं है,
आप तो इंसानियत को दहला रहे हो।
सीजफायर उल्लंघन कर कर के,
अपनी ही मौत को खुद बुला रहे हो।
हवा का रुख किस तरह मोड़ रहे हो,
आंखों में नये प्रतिशोध भर रहे हो।
हमारे ही घर के हो आप लोग ,
आज हमीं से तुम बदला ले रहे हो।
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रचनाकार – डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. – 8120587822