आतंकवाद
आतंकवाद उचित है ?
क्या आतंकवाद उचित है ?
शर्म से पानी पानी, इंसानियत भी संकुचित है।
बंदुक की खेती है,
बमों की पैदावार होती है।
आतंक हि आतंक देखकर,
भारत मां भी रोती है।
कहीं राख है,
कहीं लाश है।
कहीं बिलखती प्यास है।
खुन से लतपथ,
नई समाज अंकुरित है।
क्या आतंकवाद . . . . . .
बमों की प्रलयकारी गुंज से,
पहाड़ों के सीने भी थरथराते हैं।
मौत का मंजर देखकर,
दर्द भी दर्द से कहारते है।
कहीं रम है,
कहीं गम है।
कहीं नम है, कहीं दम है।
आज मानव ही मानव की,
मानवता से वंचित हैं।
क्या आतंकवाद . . . . . .
बस अब खत्म करो,
बहुत हो चुका खुन खराबा।
खुन से ये लाल धरती,
बचा है अब जरा सा।
मरना है तो लड़के मरेंगे,
आतंकवाद की जड़ काटेंगे।
आतंकियों को रौंद डालेंगे,
आओ शक्ति हममे संचित है।
क्या आतंकवाद . . . . . .