#आज_की_बात
#आज_की_बात
■ बदलते वक्त के साथ।
【प्रणय प्रभात】
बीते तमाम सालों में क्या बदला…? कोई पूछे तो मेरा एक ही जवाब होगा- “सब कुछ और शायद कुछ भी नहीं।”
अभिप्रायः बाहरी दुनिया में लगभग सब कुछ। नाम व पहचान से लेकर जीवन शैली व रंग-ढंग तक। आंतरिक जीवन में कुछ नहीं। सोच व समझ से लेकर आदतों तक।
परिणाम सामने है। जो बदलना चाहिए था, वो यथावत है। जो बना रहना था, वो नदारद है। इसी पर हैं आज की दो पंक्तियां। बस।।
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