आज मेरी बदतमीज़ी भरी जुबां
आज मेरी बदतमीजी भरी जुबान देखिये
टुकड़ों में सही भारत की आन बान देखिये
दुनियाँ भर को पंचशील का पाठ पढ़ाने वाले
भारत में दबे दबे कुछ मध्यवर्गी इंसान देखिये
शवों का ढेर देखकर भी यहाँ आसुँ नहीं आतें
लाशों के सौदे पर लड़ते यहाँ नेता महान देखिये
प्रजातंत्र भी होने लगा यहाँ पर अति असहाय
फाँसी खाता किसान ,गोली खाता जवान देखिये
जनता पर अनुशासन का हंटर चलाते दिनरात
छुटभैये नेताओ से होती जनता परेशान देखिये
बेवकूफ़ है हम अशोक ,जो आज़ादी ना समझेंगे
आज़ादी माँगने वाले करतें झंडे का अपमान देखिये
आग लगा कर कहतें रखों हमदर्दी हमसें ये कश्मीरी
भारत माँ का आँचल फटता रोता ये हिंदुस्तान देखिये
अशोक सपड़ा की क़लम से दिल्ली से