शाम हो गई है अब हम क्या करें...
आज कल कुछ लोग काम निकलते ही
कभी खामोशियां.. कभी मायूसिया..
होरी खेलन आयेनहीं नन्दलाल
कहाँ तक जाओगे दिल को जलाने वाले
हे कृष्ण कई युग बीत गए तुम्हारे अवतरण हुए
हमने देखा है हिमालय को टूटते
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
खुश्क आँखों पे क्यूँ यकीं होता नहीं
जिंदगी हमें किस्तो में तोड़ कर खुद की तौहीन कर रही है
बुंदेली दोहे-फतूम (गरीबों की बनियान)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
उससे मिलने को कहा देकर के वास्ता
सूनी आंखों से भी सपने तो देख लेता है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"