आज भी
आज भी बट्वे में तेरी एक तस्वीर है
तू नहीं सचमें मेरे संग ये मेरी ताज़ीर है
राह-ए-उन्स की हर सम्त पहचानता था
हिज़्र का असर देखो हम खोए रहगीर है
राएगा आशिक़ों की क़ौम का मैं नहीं हूँ
मौत मजनू जैसी होना ही मेरी तक़दीर है
इश्क़ हुआ करता था मौज़ू-ए-फ़लसफ़ा
पर आज के दौर में वज़्ह-ए-तश्हीर है।
‘क़ैस’ आज भी इश्क़ इतनी सदियों बाद
नाक़ाम होके मर जाने का रोग गंभीर है
जॉनी अहमद ‘क़ैस’