आज भी तेरी आहट
शीर्षक :आज भी तेरी आहट
आज भी तेरी आहट मुझमे समाहित
जिस दिन महसूस किया था प्रथम बार
अंदर ही अंदर एक खुशी का भाव आया
जब तू मुझमे नजर आया
तभी तो तू मेरा लाल व आंखों का नूर कहलाया
आज भी तेरी आहट मुझमे समाहित
तू भीगा था चारो तरफ से पानी रूपी प्यार में
एक अंधेरी सी कोठरी रूपी मेरी कोख में
शांत सा तू अंदर ही अठखेलियां करता
हर चिंता से बेफिक्र सा तू मेरा अंश हैं तू
आज भी तेरी आहट मुझमे समाहित
मैं सम्भालती सी तुझको अपने जिस्म में
मानो रक्षक बनाया हो तुम्हारा ही मुझे
हर करवट का अहसास महसूस करती थी मैं
कैदी नही मेरी जान बसी थी तुझमे
आज भी तेरी आहट मुझमे समाहित
उस दिन जब आना था बाहों में तुझे
अचानक ही प्रसव पीड़ा का वो असहनीय दर्द
बस खुशी तो तेरे आने की तेरे सजदे करने की
तभी आई आवाज तेरे रोने की,मेरी खुशी की
आज भी तेरी आहट मुझमे समाहित
मैं लेती रही मन मे उमंग लिए
तेरे आगमन की खुशी मानो ईश्वर प्रसाद हो
प्रसव वेदना मानो तेरे रोने मात्र से ही दूर हो गई
माँ बन मैं उस दर्द को भी भूल गई
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद