आज बहुत याद करता हूँ ।
आज बहुत याद करता हूँ ।
जिनके बीते एक दशक हो गए ।
इनके जीते सारे इश्क को ।
आज बहुत याद करता हूँ ।
जिन्दगी के पहले दोस्त- यार थे
वो बुढ़े नहीं ,वे मेरा प्यार थे ।
मैं उनका मालिक था ।
वो तो बस समकालिक थे ।
उनका कन्धा मेरा सिघासन था ।
वो चोर और हम सिपाही थे ।
वो प्यासे और हम पानी थे ।
मैं राजा और वो प्राजा थे ।
मैं व्याकुल था और वो सहारे थे ।
मैं ,उनके जिन्दगी का आखिरी दोस्त था ।
मैं ,बुढ़ापे का चश्मा था ।
मैं ,उनके रक्षक था तो ,
वो मेरे कष्टों के भक्षक थे ।
वो बुढ़े नहीं , वो मेरा प्यार था।
मैं उनका आखिरी यार था।