आज टली फिर फांसी उनकी (चौपाई छंद)
कैसे मां विश्वास करेगी,
कब तक वो दिन रात लड़ेगी।
बेटी खोए वर्षों बीते,
कायर वो अपराधी जीते।
आज टली फिर फांसी उनकी,
होनी थी कल फांसी जिनकी।
आज कोर्ट से मां फिर हारी,
लड़ते लड़ते थकी बिचारी।
किसको कोसे किसे उबारे,
मां मन ही मन यही विचारे।
न्याय यहाँ है जाने कैसा,
मिला उसे जो देता पैसा।
मेरा दर्द न जाने कोई,
मैने ही वो बेटी खोई।
नौ माह जिसे तन मे पाला,
दिन है याद अभी वो काला।
तब से रोज लड़ी है माता,
लगता है अब क्रूर विधाता।
क्यूँ कोई विश्वास करेगा,
जाने कब इंसाफ मिलेगा।
भारत की यह न्याय प्रणाली,
लगती है कालिख से काली।
बेटी कभी न जन्मे माता,
कहे “जटा” कर जोर विधाता।
जटाशंकर “जटा”
३१-०१-२०२०