आज खुशियाॅं लौटी हैं !
आज खुशियाॅं लौटी हैं !
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बहुत दिनों के बाद….
आज खुशियाॅं लौटी हैं !
दहक रहा था….
तन – बदन मेरा !
उखड़ा-उखड़ा सा था….
नादां ये मन मेरा !
चारों तरफ़ ही….
खामोशियाॅं छायी थीं !
नकारात्मकता के वाण….
मेरे सीने में चुभ जाती थी !!
पर वो तो पहले की है बात !
अब ना रही वैसी कोई बात !
काफ़ी सुधरे हैं वे सारे हालात !
खिल रहे हैं अब मेरे जज़्बात !
चैन से कट रहीं मेरी सारी रात !
साथ ही चल रहीं ये कायनात !
हो रही अब खुशियों की बरसात !!
क्योंकि बहुत दिनों के बाद….
आज खुशियाॅं लौटी हैं !
क्या खुद का किया कुछ करम है….
या वक्त का मुझपे कुछ रहम है !
पर ये तो बिल्कुल ही तय है कि….
अब ना वो कोई ज़ुल्मो-सितम है !
मैंने तो बिल्कुल ये ठान लिया है….
कि जो भी हो, नहीं कोई ग़म है !
भूलकर पुराने वो सारे ज़ख़्म….
अब तो मुस्कुराना ही हरदम है !!
क्योंकि बहुत दिनों के बाद….
आज खुशियाॅं लौटी हैं !
पर्व-त्योहार का आज मौसम है !
खुशियों का माहौल ये गरम है !
माॅं दुर्गा की पूजा, आराधना में….
सारा जनमानस ही आज तत्पर है !
आज इस सुरभित, सुवासित क्षण में….
नाचने, गाने, झूमने का ये अवसर है !
मुझे भी आज इस पावन अवसर पर….
सकारात्मकता का लेना कुछ प्रण है !!
क्योंकि बहुत दिनों के बाद….
आज खुशियाॅं लौटी हैं !!!!!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 13 अक्टूबर, 2021.
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