आज के बच्चों की बदलती दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
बालपन में बचपन को खोजती दुनिया
लट्टू की थाप पर थिरकती दुनिया को खोजती
पतंग की डोर संग, आसमां छूती दुनिया को टोहती
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
कुछ बदरंगी सी , कुछ मटमैली सी
रंगों के अभाव में , बेरंगी होती दुनिया
कागज़ की नाव की तरह तैरती – उतराती दुनिया
कागज़ के प्लेन सी , हवा में गोते लगाती दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
मोबाइल , टैब और लैपटॉप के इर्दगिर्द घूमती दुनिया
किताबों की खुशबू से परे , टी वी , मोबाइल को जिन्दगी समझती दुनिया
कंचों की खनखन का अभाव झेलती दुनिया
सांप – सीढ़ी पर तालियों की गूँज का अभाव झेलती दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
वो बारिश में भीगने के लुत्फ़ से महरूम दुनिया
वो चीटीधप के साथ , क़दमों को टटोलती दुनिया
वो छुपन छुपाई के खेल में मिलने वाले आनंद से महरूम दुनिया
आज के यंत्रजालों में उलझकर रह गयी दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
वो मंदिर की घंटी की ताल पर दौड़ता बचपन
वो बेर के पेड़ की छाँव को तरसता बचपन
माँ की लोरियों के अभाव से जूझता बचपन
वो दादा – दादी की कहानियों को तरसता बचपन
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
क्यूं कर न फिर से रोशन हो जाये सब
वो सत्तर व अस्सी के दशक की बाल दुनिया
क्यूं कर न फिर से विश्वास लबरेज हो जाए ये दुनिया
क्यूँ न फिर से गली – मोहल्ले की रौनक हो जाए ये दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
पतंगों की उड़ान से रोशन हो जाए आसमां
कंचों की खनक से , फिर से रोशन हो जाए गलियाँ
बचपन अपने बालपन को न तरसे फिर से
माँ की लोरियों , दादा – दादी की कहानियों से संवर जाए ये दुनिया
आज के बच्चों की बदलती दुनिया
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”