आज की दुनियाँ
मैं क्यों आया इस दुनियां में,
क्या मेरी है औकात यहां।
मन क्यों नहीं इसपर मनन करे,
किस धोखे में इंसान यहाँ।।
किस क्षण कब कैसे क्या होगा,
किसको है इसका ज्ञान यहां।
क्यों सोच रहा कल परसों की,
नहीं पल भर का अनुमान यहाँ।।
झूंठे दुनियाँ के रिश्ते सब,
बस मतलब का है खेल यहाँ।
मिथ्या जीवन की मिथक शान,
फिर क्यों खोया इंसान यहाँ।।
कुछ रिश्ते रक्त रवायत के,
कुछ हमने आकर बुने यहाँ।
मतलब के हल हो जाते ही,
नहीं रहता कोई साथ यहाँ।।
दो जिस्म मगर एक जान थे जो,
जन्मों के बंधन बंधे यहाँ।
एक ठेस लगी वो कहर हुआ,
रिश्तों पर खंज़र चले यहाँ।।
कुछ मिले सफर में अपने से,
उनपर अपना वश ही था कहाँ।
जब तक दिल किया चले संग वो,
दिल भरते ही जाते भूल यहाँ।।
सबकी चाहत तुम करो सिर्फ,
कठपुतली जैसे खेल यहाँ।
गर, अगर मगर कुछ बोल दिया,
फिर नहीं तुम्हारी खैर यहाँ।।
मेरा आगमन कर्ममय है,
वही करना है निष्काम सदा।
मत सोचो किसे खुशी रखना,
किसको होता है कष्ट यहाँ।।
-अशोक शर्मा
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