आज का युवा
दबे दबे से स्वर अकुलाए मांग रहे क्यों ठौर,
तेज तुम्हारे मुख मंडल का कहता है कुछ और।
दिख रहीं भुजाएं बलिष्ठ बहुत फड़क रही हैं मीन,
छुपा हुआ यह अपार बल दिखता क्यों अधीन।
गर्वित शीश झुके से क्यों परवशता है सिरमौर ?
तेज तुम्हारे मुख मंडल का कहता है कुछ और ।
गहरी हुई ललाट रेखाएं माथे पर क्यों बल है,
सीना ताने वार सहे जो ढूंढ रहे क्यों संबल हैं,
अमर दान के कर ये सुंदर छीन रहे क्यों कौर ?
तेज तुम्हारे मुख मंडल का कहता है कुछ और ।
माना मृत्यु निकट है अब तुम प्रलाप कर लोगे ,
अनेक छद्म वासनाओं से स्वर्णिम मिलाप कर लोगे,
रोती है क्यों आम्र मंजरी शोषित है अब बौर ?
तेज तुम्हारे मुख मंडल का कहता है कुछ और ।
अखंड साधना चले चिरंतन अपना लक्ष्य यही था,
यौवन हो मधुमास समर्पित कदापि तनिक भी न था,
दर्प दहन प्रतिपल होता था शीतल है क्यों सौर?
तेज तुम्हारे मुखमंडल का कहता है कुछ और।
दबे दबे से स्वर अकुलाए मांग रहे क्यों ठौर?
तेज तुम्हारे मुख मंडल का कहता है कुछ और।
~माधुरी महाकाश