आज का आदमी –
आज का आदमी कितना व्यस्त,
कितना एकाकी, कितना अकेला।
तल्लीन है फाइलों में,
एक अजीब सी हलचल है दिमाग़ में,
पता नहीं क्या खोज़ रहा था ,और क्या मिल गया।
देखकर ऐसा प्रतीत होता जैसे,
दिमाग़ का थैला भर गया है नकारात्मक विचारों से
,बेचारा ऑनलाइन काम से पहले ही ऑफलाइन हो गया।
योगा मेडीटेशन सिर्फ पत्रिका या चैनल पर देख पाता है।
ऑफिस आज जैसे जंग का मैदान हो गया है।
लिपिक और अधिकारी के तालमेल के अभाव में ,
दिमागों में घमासान हो गया है।
यहां हर कोई कमाना चाहता है अतिरिक्त,
जो वेतन अकाउंट में आता है,
उ ससे उसे कोई सरोकार ही नहीं है।
समझ नहीं आता कि क्या लेे जाना चाहता है शाम को घर।
एक टोकरी भर फल, ,ढेर सारा तनाव और दबाव अनजाना सा डर।
जैसे ही घर में प्रवेश करता है ,खुद से पहले पहुंच जाता है उस नकारात्मक विचारों का असर।
चुपचाप थका मांदा बैड पर जाता है पसर,
न तो फल न ही लेे पाता है भोजन।
खोजने लगता है कार्यवाही की जबाव देही, असर
और साधने लग जाता है अपने स्वास्थ्य को भूलकर रिश्तों और पहुंच का प्रयोजन।
सोचते सोचते पता ही न चला कि कब रात हुई और कब भोर हो गई आज नींद की गोलियां भी बेअसर हो गई।
उठा फ्रैश हुआ सोचते सोचते चाय पी,
टिफिन उठाया और फिर एक अनजानी सी राह पर चल पड़ा ।
न जाने व्यस्त मस्त या फ़िर से उतना ही अकेला।
रेखा दिशा विहीन मंजिल तक कैसे जायेगा धकेला।