आज कह दो ना
कितनी अधूरी बातें रह गयी थी
कल कहने को
आज कह दो ना
साँसे कम पड़ रही थी मेरे हिस्से की
अपनी साँसे भर दो ना
जो भी हुआ,जैसे भी हुआ
शायद होना नहीं चाहिए था
तुम होने लगी थी कुछ-कुछ मेरी
मैं भी चाहने लगा था तुम्हे थोड़ा-थोड़ा
बताओ ना क्यों था साथ तुमने छोड़ा
मैं नहीं कह पाया कभी
तो तुम ही कह देती
लब्ज कम पड़ रहे थे
तो आँखों का सहारा लेती
पर ये जो भी था, वो था
और ये सच था , तुम्हारे मेरे बीच का
तुम क्यों इसे झुठला रही थी
खुद को या मुझे धोखा दे रही थी
देखो ज़िन्दगी कम ना पड़ जाए मेरे हिस्से की
उससे पहले कह दो ना
आज कह दो ना–अभिषेक राजहंस