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8 Aug 2021 · 1 min read

आज और अतीत

कठिन परिश्रम का
प्रतीक
मंगू मजदूर
प्रति दिन
अपने परिवार
की भूख के लिए
जेठ की तपती
दोपहरी तक
श्रम करता था
फिर भी
कभी कभी
अपना निवाला
बच्चों को खिलाकर
स्वयं केवल
ठंडा पानी पीकर
टूटी खाट पर
रात्रि भर
भूख के कारण
गगन के तारे
गिनकर
हल्की झपकी के साथ
सोकर
प्रभा की प्रथम वेला मे
उठकर
मुस्कराते हुए
र्कम पथ पर
एक आशा के साथ
चला जाता था|
आशा
निराशा का द्वन्द्व
र्निधनता
तंगी
शोषण
से पोषित
होकर
पेट
सूखे पात की भांति
पीठ मे
मिल गया था
अपरिमित
कष्ट के कारण
डर गया था|
किन्तु
पवित्र आत्मीय
सन्त की
सजगता
ईमानदारी
र्कमठता
राष्ट्र के लिए
कुछ करने
की इच्छा शक्ति
साहस
दृढ़ संकल्प
के कारण
मंगू का
घर अब
अन्न
की अधिकता
के कारण
भर गया
सब कुछ
कुछ बर्षो में ही
बदल गया|
मंगू
गैस पर
अपनी
पत्नी को
रोटी सेंकते
देखता
तब
मन ही मन
फक्कड़ संत को
हजारों आशीर्वाद
देकर
बड़बड़ाकर
अतीत को
कोसता|
रचयिता
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार
ग्राम-नरदी, पसगवां, लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 646 Views
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