आज इंसान कम दानव ज्यादा
आज
सच बेबस,
ईमान छला-सा
और
नेकी ठगी-सी
महसूस कर रही हैं।
भ्रष्टाचार की जड़ें
शनैः-शनैः
बढ़ रही हैं
समग्र जग को
पल-प्रतिपल
लील रही हैं।
झूठ का
चतुर्दिक
बोलबाला है,
हिंसक प्रवतियों ने
पग-पग पर
डाला डेरा है।
इंसानियत भी
खाक-ए-दफन
हो गई है,
और
आदर्शों पर
तीक्ष्ण खंजर
चल रहे हैं।
हे पालनहार,
परमपिता परमात्मा
तुम्हारे जग में
यह सब
क्या हो रहा है ?
इंसान
आज इंसान कम
दानव ज्यादा
क्यों नजर आ रहा है?