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8 Dec 2016 · 1 min read

आजा के मेरी खुशियों की सौगात बन के आ……….

आजा के मेरी खुशियों की सौगात बन के आ
चाँद तारों से महकी शबनमी रात बन के आ

ए सनम में भूल जाऊं अगले पिछले सारे गम
इस दिल में नई दुनियाँ की शुरुआत बन के आ

खिले फूल कभी दिल का रंग होंठों पे आ जाये
मेरे उजड़े हुये चमन में तिलिस्मात बन के आ

तस्वीर-ए-ख़याल-ए-यार से कहता है दिल अक्सर
देख सुनती है तो आजा करामात बन के आ

आये न रास हरदम दिन गर्म और रातें सर्द
में मोर बन के ना चूं तू बरसात बन के आ

जी उठे मरने के बाद मार मिटें उठने के बाद
दिलबर मेरे सूरत-ए-गुजर-औकात बन के आ

चलने को जगह’सरु’ न रुकने की ताब है मेरी
बह जायें हाये समंदर भी वो गात बन के आ

suresh sangwan(saru)

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