आजादी
।।आजादी।।
नज़र लफ्ज़ को जब डराने लगे।।
चाबुक का डर फिर सताने लगे ।।
तो मत पूछ क्या बनेगा मंज़र ।।
संस्कृति को तू करेगा बंजर ।।
स्याह अंधेरे फिर आ डटेंगे ।।
कालिया भविष्य को आ डसेंगे ।।
गुलामी के बंधन में बंधेगा ।।
खुदा भी न तब सहारा बनेगा।।
भाग्य में होगी खंदक-खाई ।।
विश्व पटल पर होगी रुसवाई।।
रखना तू फिर इस बात का ख्याल ।।
ज़मीर तेरा पूछेगा सवाल ।।
तो उठ आ खड़ा हो मैदान में ।।
न देर कर कर्तव्य पहचान ले।।
शब्द-बाणों को चढ़ा कमान पे।।
और आजादी को जी शान से ।।
।।मुक्ता शर्मा ।।