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31 Dec 2022 · 2 min read

आजादी का जुनून – एक पुण्य सोच

परतंत्र भारत में आजादी का जुनून सभी के सिर चढ़कर बोल रहा था l उन आजादी के दीवानों मे कुछ लाठियां झेलने तो कुछ गोलियाँ झेलने को तैयार थे तो कुछ सूली पर चढ़ जाने को तो कुछ गोलियाँ बरसाने को l आजादी के दीवानों मे जिन्होंने गोलियाँ खाने और बरसाने वाला रास्ता चुना उनका आजादी के जुनून का सफर लंबा नहीं रहा l पर उन चली गोलियों और बमों की आवाज़ आज भी हमारे कानों में गूँज रही है l और उनके द्वारा चलाये गए बमों और और गोलियों की आवाज भी | किन्तु जो आजादी के दीवाने सत्याग्रह की राह पर चले और जो सहनशील थे वे लड़ते भी रहे और ब्रिटिश सत्ता पर अपना असर छोड़ते भी रहे l उनके सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन ने अंग्रेजों के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया l और वो दिन भी आ गया जब लालकिले की प्राचीर पर आजाद भारत का झंडा फहरा दिया गया l जो सूली पर चढ़ गए वो भी देशवासियों के दिल में एक जगह बना गए और जो जेल की अंधेरी काल कोठरी में आजादी का बिगुल बजाते रहे वे भी आज हमारे दिलों में राज कर रहे हैं l
समस्या इस बात की है कि इनके बलिदान को राजनीतिक अवसरवादिता ने राजनीतिक ज़ंग का मैदान बना दिया है l चुनाव आते ही राजनीति के आकाओं को इन देश प्रेमियों की याद आने लगती है | आवश्यकता तो इस बात की है कि हर दिन आजादी के दीवानों का दिन हो | न कि विशेष अवसर पर आधारित | हमें कोई हक़ नहीं है कि हम उनके बलिदान को इस तरह नकार दें | जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित किया उनकी पुण्य सोच को इस तरह बिसार दें | चौराहों पर उनकी मूर्तियाँ लगाने से बेहतर है कि हम लोगों के दिलों में उनका एक मुकाम सुनिश्चित करें | उनके समर्पण को इस तरह जाया न करें | नेताओं की कुटिल चालों से बचें | गर नेताओं में राष्ट्रभक्ति का इतना ज़ज्बा होता तो उनके घर का एक – एक बच्चा आज हमारे देश की सेना का हिस्सा होता | नेताओं की कुटिल राजनीति से बचें | और पूर्ण समर्पण के साथ देश के वीरों का सम्मान करें | उनके परिजनों का सम्मान करें जिन्होंने देश की आजादी, रक्षा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अपने परिजनों का बलिदान दिया |
हमारे देश में राष्ट्रभक्ति के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले नेताओं की अपनी मंशा केवल और केवल कुर्सी पर कब्ज़ा ज़माना है | जनता की पीड़ा से इन्हें क्या लेना | आइये सच को जानें और सच को पहचानें और राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं | धार्मिक भेदभाव छोड़कर आपसे भाईचारे को बरकरार रख एक नए भारत का सपना साकार करें |

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Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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