आज़ाद पंछी
दो प्यार करने वाले
अजनबी बन जाते हैं जब
लगता है ऐसा जैसे
जान निकल गई है अब
ख़त्म हो गई है दुनिया
कोई बिछड़ गया है अब
एक सुनहरी सपना जैसे
कोई टूट गया है अब
भरी बसंत में अचानक
पतझड़ आ गया है अब
दिन दहाड़े जैसे यहाँ
अंधेरा छा गया है अब
नीरस हो गई है ये ज़िंदगी मेरी
सबकुछ तो चला गया है अब
बुरा लगता था जो इंतज़ार पहले
वो भी बस तमन्ना रह गया है अब
कुछ करने में मन नहीं लगता
सांस लेना भी मुश्किल हो गया है अब
सुनी नहीं है उसकी आवाज़ जबसे
सबकुछ सुनना बंद हो गया है अब
मुस्कुराता है जब कोई मुझे देखकर
मुझे उसका ही चेहरा नज़र आता है बस
भूलकर सबकुछ न जाने क्यों
दिल का ये दर्द याद आ जाता है बस
जो भी हुआ अच्छा ही हुआ
उसको तो सुकून मिल गया है अब
बेड़ियों में जकड़ा महसूस कर रहा था जो
वो आज़ाद पंछी बन गया है अब।