आज़ादी के दीवानों ने
आजादी के दीवानों ने
सुलगाई जो चिनगारी।
ज्वाला बनकर टूट पड़ी थी
अंग्रेजों पर अति भारी।।_२
यह ज्वाला झांसी में प्रगटी,
रणचंडी बन कूद पड़ी।
सांस चली थी जब तक घट में,
अंग्रेजों से खूब लड़ी।।
नहीं रुकी थी नहीं झुकी थी_२
मुक्ति रण की दीवानी…
ज्वाला बनकर टूट पड़ी थी
अंग्रेजों पर अति भारी।।_२
हड़प लिए थे राज्य उन्होंने,
बुझदिल कुछ नहीं कर पाए।_२
भारत मां को गिरवी रखकर
एक पल भी ना दहलाये।।
घर के जयचंदों ने ही तो_२
अपनों की ली कुर्बानी….
ज्वाला बनकर टूट पड़ी थी
अंग्रेजों पर अति भारी।।_२
हंस-हंस फांसी गले लगाई,
भगत सिंह से वीरों ने।
तिलक लगाकर विदा किए
जब रांझे अपनी हीरों ने।।
वतन की मिट्टी में घुल गई थी_२
उनकी प्रेम कहानी….
ज्वाला बनकर टूट पड़ी थी
अंग्रेजों पर अति भारी।।_२
@करन केसरा