‘आज़ादी का उत्सव’
प्यारे आओ आज़ादी का उत्सव मिल के मनाते हैं,
त्यागो सारी दुविधाएँ भारत माँ को शीश झुकाते हैं|
ना हिन्दू ना मुस्लिम कोई ना सिख ना कोई ईसाई,
सबसे पहले मानव हैं सब मानवता के बनें पुजारी|
कभी ना झगड़ें आपस में प्रण मिल आज उठाते हैं||१||
ना कोई ऊँचा ना कोई नीचा मानव जात समान है,
भेद करे फिर भी आपस में वह नर मिरग समान है|
सुन्दर संस्कृति भारत की सब मिल आओ बढ़ाते हैं||२||
मिटा द्वेष और लोभ-ईर्ष्या, याद करो उन वीरों को,
देश-प्रेमी मानवता खातिर, निगल गए शमशीरों को|
जीना है तो देश के हित में मरना हमें सिखलाते हैं||३||
स्वतंत्रता शंखनाद सदा हो हर दिल भारतवासी में,
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र न भेद हो देश निवासी में|
रूढ़ियाँ ये जातिवादी सब मिल आओ मिटाते हैं||४||
जीवन राग अनुराग देशहित मार्ग प्रशस्त हुआ हमें,
चिराग निरंतर इस घट अंदर जला रहे ये याद तुम्हें|
रहो सदा एक भारतवासी सन्मार्ग ‘मयंक’ दिखाते हैं ||५||
✍ के.आर. परमाल “मयंक”