आजमा ले जिंदगी
. . . . . . . . . . . गजल. . . . . . . . . . . . .
रूह को फुरकत के लम्हों से मिला ले जिंदगी
फिर किसी पत्थर सनम को तू मना ले जिंदगी
हो गया है चूर थक कर चाहता आराम बस
जाम उल्फत के मुसाफिर को पिला ले जिंदगी
दोस्त ही क्या दुश्मनों को न कभी रुसवा किया
आजमाना हो तुझे गर आजमा ले जिंदगी
आज फिर बीमार दर्द -ओ-जां बहुत गमगीन है
ज़िंदगी की हर दवा मुझको पिला ले ज़िन्दगी
दे गया लाखों दुआएं कुछ ही पैसों के एवज
यार ऐसा कर यतीमों की दुआ ले जिंदगी
नफरतों के दौर में मिलती कहाँ रानाईयां
रूठ गर जाए खुशी उसको मना ले जिंदगी
अब तलक था लाश जिंदा, था कहाँ तुझमें हुनर
आज “योगी” जिंदगी को फिर बना ले जिंदगी
??????. योगेन्द्र योगी कानपुर