आजमाती है ज़िन्दगी तो, इम्तिहान कड़े होते हैं।
आजमाती है ज़िन्दगी तो, इम्तिहान कड़े होते हैं,
काँटों की राह पर चलकर, हम उम्र को खोते हैं।
यूँ तो हर ईंट खुद को, मकान समझकर जीता है,
पर वास्तव में एक बूँद कभी, दरिया तो नहीं होता है।
सफर लम्बा है तो हमराही, तो बहुत मिल जाते हैं,
पर मंजिलों तक साथ निभाने वाले, विरले हीं मिल पाते हैं।
ये दरख़्त कितने हीं, परिंदों के घर तो बन जाते हैं,
पर जो छाये पतझड़ तो, वो भी कहाँ साथ निभाते हैं।
वक़्त की आदत है कि हर लम्हा, एक दिशा में चलता जाता है,
बस तस्वीरें और यादें रह जाती हैं, कोई लम्हा खुद को कहाँ दोहरा पाता है।
कुछ दर्द ऐसे हैं जो, रूह को कुचल देते हैं,
कांपती है हर सांस पर, ये आँखों से कहाँ बहते हैं।
गिरकर उठना ये हर बार, हुनर नहीं बन पाता है,
शैनेः शैनेः ये तो आदतों में, शुमार सा कहा जाता है।
यूँ तो चाँद की तन्हाई को, ये सितारे भी बाँट लेते हैं,
पर जलते सूरज के एकाकीपन पर, हम कहाँ ध्यान दे पाते हैं।
कलम चलती है या दर्द, स्याही बनकर पिघलता है,
निःशब्द जज्बातों का पता, हर किसी को कहाँ चलता है।
अब अगले मोड़ की हम, फ़िक्र नहीं कर पाते हैं,
एक मुस्कान लिए बस, आँधियों से टकरा जाते हैं।