आजकल
??आजकल??
चाह नहीं सोना ,चांदी, जवाहरातों की,
मुझे तो थोड़ी जमीं, थोड़ा आसमां चाहिए।
अपना प्यारा सा,सारा जहां चाहिए।।
आपस में था भाईचारा, सब मिलजुल
कर है रहते,
प्रेम की बहती नदियां थीं, जब सब एकता में हे रहते।
आज नहीं है वक्त किसी को,अपनों के लिए,
ठहरें हो जैसे किसी सराय में,
बिताकर रात अपने मुकाम पर,
फिर चल दिए।
सिलसला चलता यही ,अब आजकल
फुर्सत नहीं है किसी को भी,पल दो पल।
भागदौड़ सी जिंदगी,मचा हुआ है हलचल,
चैन,अमन,शांति, सकून ,नहीं है इकपल।
ऐसी भागम भाग सी,हो गई रे जिंदगी
मानव भी परेशान है,देख कर ऐसी
बंदगी।
सुषमा सिंह *उर्मि,,