आजकल मैं
आजकल मैं कुछ लिखती हूं
भावों को शब्दों में देखती हूं
उलझनें अब मध्यम सी है
आंखों की नमी कुछ कम सी है
खुद को पहचानना आ गया है
जज़्बात बयां करना शायरा बना गया है
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)
आजकल मैं कुछ लिखती हूं
भावों को शब्दों में देखती हूं
उलझनें अब मध्यम सी है
आंखों की नमी कुछ कम सी है
खुद को पहचानना आ गया है
जज़्बात बयां करना शायरा बना गया है
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)