आजकल तो हुई है सयानी ग़ज़ल,
आजकल तो हुई है सयानी ग़ज़ल,
दर्द दिल के बताती ज़ुबानी ग़ज़ल।
ग़र पता है बता दो मुझे यार तुम,
है कहाँ खो गयी वो दीवानी ग़ज़ल।
जश्न होगा यक़ीनन चराग़ों तले,
मिल गयी ग़र कही वो रूहानी ग़ज़ल।
बेजुबां की जुबां हैं यक़ीं मान लो,
प्यार के दरमियां है निशानी ग़ज़ल।
राज़ दिल में हमारे दफ़न हैं कई,
कब तलक यूं पड़ेगी छुपानी गज़लI
ज़ख्म गहरे हमें ज़िन्दगी ने दिये,
तो बनी आज मरहम सुहानी ग़ज़ल।
ख़ून दिल का पिलाया कलम को मगर,
बात फैली शहर में पुरानी ग़ज़ल।
पंकज शर्मा “परिंदा”