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11 Feb 2018 · 1 min read

आग

लोग पूछते है कि क्यों तुम, आग लिखते हो,
सरहिंद के माटी का क्यो, अनुराग लिखते हो,
प्रियतमा के प्रेम में कोई, प्रेमगीत लिखते,
पर जले सीने का क्यो, ये दाग लिखते हो।

मैंने कहा आदत से मैं, मजबूर हो गया हुँ,
अहलेवतन के प्यार में, मगरूर हो गया हुँ,
चाहता तो हुं माशूक़ के, आगोश में सोऊ,
पर फ़र्ज़ के कारण ही, उससे दूर हो गया हुँ।

बिंध जाते है सीने, पुष्प प्रेम खिलते देखकर,
भाईचारे के दिखावे, पे गले से मिलते देखकर,
आह निकलती है जब, तब ये आग लिखता हूँ,
खोलता हुँ कलम फिर, हलाहल राग लिखता हूँ।

मौन होना गर कलां है, तो मुझे कलां आता नही,
दुश्मनों से प्रेम करना, हृदय को भला भाता नही,
संस्कार ऐसा नही की, हम धोखे पे धोखे खाते रहे,
मैं पुरु, पोरस नही, पृथ्वीराज सा छला जाता नही।

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११/०२/२०१८ )

Language: Hindi
11 Likes · 466 Views
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