आग जो लग रही है बुझाओ इसे
स्रिवणी छंद
विधा-गीतिका
मापनी२१२ २१२ २१२ २१२
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आग जो लग रही है बुझाओ इसे।
देश पीछे हुआ जो बढाओ इसे।।(१)
वक्त गुजरा बहुत आपसी रंज में,
एक पल भी नहीं अब गंवाओ इसे।।(२)
घाव तन पर वतन के लगें हैं बहुत,
प्यार का लेप अब तुम लगाओ इसे।(३)
हो रहा है विखंडित सपन देश का,
स्वार्थ को दूर रखकर सजाओ इसे।।(४)
खून अब बह चुका बेवजह ही बहुत,
मान मेरी जरा, मत बहाओ इसे।(५)
भूत में भी रहा है गुरू विश्व का,
काम ऐसे करो फिर बनाओ इसे।(६)
छोड़ दो कृत्य नफरत के अब ऐ अटल!
प्रीत की रीति से ही चलाओ इसे।(७)
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अटल मुरादाबादी