आग को मोम के पास लाने लगे
ज़र्फ़ अब तो सभी आज़माने लगे
आग को मोम के पास लाने लगे
पास आकर वही दूर जाने लगे
नक्श कुरबत के खुद ही मिटाने लगे
दोष उसका कहां तक न मानें हुज़ूर
जब नजर कोई खुद ही चुराने लगे
उंगलियों पर मढ़ा जा रहा है कुसूर
खुद नज़र बे इजाज़त उठाने लगे
ग़म तुम्हारा सुखन की अलामत बना
बज़्म में रंग हम भी जमाने लगे
एक पल में बसाया था दिल में कभी
भूल जाने में उसको ज़माने लगे
ठोकरे जब जमाने से मिलने लगी
वो मुझे आज अपना बताने लगे