हिंसा की आग 🔥
हिंसा की आग 🔥
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जब विजयादशमी के मेले लगते हैं,
तो दशमुख के पुतले जलते हैं।
पर देखो बीरभूम बंगाल की धरती,
एक-एक कर दस मुख इंसानों के,
धधक धधक जिंदा जलते हैं ।
फूंक दिया घर, जन के संग ही ,
महिलायें,बच्चे भी जिंदा जल गए।
पुतले नहीं जीवित मानव ये ,
धू धू कर क्यों जिंदा जलते हैं ।
आग आग खेलो,
ये खेला होबे वाली धरती है।
आयी है तालिबान संस्कृति,
शर्मसार मानवता लायी है।
आपदा विपदा नहीं है ये तो।
सोची समझी साजिश है।
भयग्रस्त करो इतना धरती को,
परिन्दे तुरंत ठिकाने बदले।
मौन प्रशासन देख रहा है,
अपराधी पुलिस गठजोड़ वहाँ है।
अब भी यदि संभले नहीं हम तो,
ईस्ट बंगाल जैसे पाकिस्तान बना था,
वैसे ही वेस्ट बंगाल बांग्लादेश बनेगा।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २२/०३ /२०२२
चैत ,कृष्ण पक्ष,चतुर्थी ,मंगलवार।
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201