आग अभी भी बाक़ी है
हम ने खुद को सूली पे चढ़ाया,
तुम्हारे लिए,
तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य के लिए,
तुम्हारे बच्चों के लिए,
तम्हारी आने वाली नस्लों के लिए,
इन्कलाब कि एक चिंगारी फेंकी थी,
देश के सीने पे,
तुम्हारे मुर्दा जीने पे,
हमारे मर कर भी जीने पे
अब, कब दहकोगे,
कब महकोगे ?
कब उठोगे तुम की प्रतिकार करोगे ?
कि खुद को ख़ुद से आज़ाद करोगे ?
अपने होने के हक पे प्रतिवाद करोगे ?
हुंकार भरोगे कि ढह जाए,
पूंजीवादियों, शोषकों और शासकों
कि लाशों पर खड़ा सम्राज्य।
कि धूल धूसरित हो जाए
खून सने हांथों में थामा
धर्म का विजय पताका।
उठो कि अब भी देर नहीं हुई है,
जलो कि दिए की तेल अभी भी खत्म नहीं हुई है,
अब भी कुछ उम्मीद बाक़ी है,
तुम में भी जीवन की निशानी है
कुछ तेरे हिस्से कि कुछ मेरे हिस्से कि
आग अभी भी बाक़ी है बस फूंक मार उसे दहकानी है…
सिद्धार्थ…