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6 Oct 2021 · 1 min read

आग्रह बरगद से

उष्ण आदित्य के तीक्ष्ण ताप में
बिलबिलाते हुए समुद्र से
मत कहो कि
बड़ा शीतल है तुम्हारा छाँव।
कर्मयोगी का योग न करो भंग।

शुष्क पवन के तेज प्यास में
आहूति की तरह होम हो रहे मेघ से
मत कहो कि
बड़ा विशाल है तुम्हारा ठाँव।
कर्मशील का शील न करो भंग।

शुभ्र आकाश के विराट फैलाव में
प्रवाहित हो रहे वायु से
मत कहो कि
बड़े आकर्षक हैं तुम्हारे गह्वर।
कर्मनिष्ठ की न्ष्ठिा न करो भंग।

घनघोर वृष्टि के घातक आघात में
खेत जोतते हुए किसान से
मत कहो कि
बड़ा मीठा है तुम्हारा फल।
कर्मोद्योगी का उद्योग न करो भंग।

लौह भठ्ठी के उच्च तापक्रम में
लौह पिघलाते लौह पुरूष से
मत कहो कि
बड़ा ठंढ़ा है तुम्हारा श्वेत–रक्त।
कर्मसिद्ध की सिद्धि न करो भंग।

अंधेरी‚भयावह‚काली सुरँगों में
फावड़े चलाते दृढ़ भुजाओं को
मत कहो कि
बड़ी उर्जाशील है तुम्हारी काष्ठकाया
मनोबली का मनबल मत करो भंग।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 163 Views
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