आखिर मैं हूं ऐसी क्यों
आखिर मैं हूँ ऐसी क्यों?
आखिर मैं हूँ ऐसी क्यों?
मैं कैसे भूलूँ वो सपना?
जो हो न सका कभी अपना
आखिर मैं हूँ ऐसी क्यों?
मैं हुई नहीं उस जैसी क्यों?
मैं बुद्धिवान और क्षमतावान
पर क्यों न हुई मैं शक्तिवान?
मैं क्यों अपनों में उलझी हूँ?
फिर और भी मैं अनसुलझी हूँ
मैं माँ की नहीं पिता की हूँ
मैं अपनी नहीं पराई हूँ
क्या मैं धरती की जायी हूँ?
ये देश न मेरा घर होगा
वो तो परदेश में ही होगा
लेकिन वो कैसे अपना है?
जो मैंने कभी नहीं देखा
मैंने तो माँ को देखा था
जब इस दुनिया में आयी थी
पर उसका नाम भी न मिला मुझे
क्या वो इतनी परायी थी?
वो कोख तो मेरी अपनी थी
लेकिन वो तो किसी की पत्नी थी
हे प्रभु! कैसा छल है कर डाला?
माँ की कोख का भी कॉपीराइट कर डाला?