आखिर मैं गृहिणी ही क्यों
मैं नारी, मेरी पराधीनता, माथे कलंक छाई
मेरी कोमलता, शालीनता, बन गई परछाई
केवल नवरात्रि में ही मैं पूज्य, जग कहे माई
संविधान ने दिया अधिकार समता का, नर से पछिआई
खयाबो में उड़ने के पंख सजाकर
समाज के तानों से, नर के अभिमानो से
मैं नारी गई हमेशा धककियाई
ममता की सीढ़ी चढ़कर
आगे कुआं पीछे खाई, तब भी कदम बढ़ाकर
सर्वोच्च पदो पर बैठ कर, मैं गृहिणी ही कहलाई
मैं I.A.S, मैं I.P.S, मैं डाक्टर, मैं इंजीनियर
ज्ञान विज्ञान को आत्मसात कर, अपनी मंजिल पाई
सर्वोच्च पदो पर बैठ कर भी, मैं गृहिणी ही कहलाई