आखिर मन ही तो है
आखिर मन ही तो है
कभी ख्याली बूंद बन महल सजाने लगता है
और कभी दूसरे ही पल खुद के बनाय घरोंदे को खुद ही तहस नहस करने लगता है ।
आखिर मन ही तो है
कभी अपने जीवन को देता है नया अर्थ ।
और कभी खुद के किरदार को मिटाने लगता है।
आखिर मन ही तो है
कभी अराजक होते आवाज को शरण देता है।
और कभी दूसरे ही पल खुद के मन की अमृत धारा को मिटाने लगता है।
आखिर मन ही तो है
कभी गमगीन समां मे किसी को साझेदार नहीं बनाता है
और कभी आशुतोष खुशियो की सरगम भी सारे जहाँ को सुनाना चाहता है।
आखिर मन ही तो है।