“आखिर क्यों “
“आखिर क्यों ?”
राम अपनी प्रजा का हाल लेने के लिए भेष बदलकर घूम रहे थे | तभी उन्होंने एक धोबी और धोबन को लड़ते हुए सुना | धोबी धोबन को कह रहा था, “मैं राम नहीं हूँ, जो तुम्हे एक रात घर से बाहर गुजारने के बाद भी अपने घर में रख लूँगा |” इतना सुनते ही राम अपने महल में लौट गए | अगले दिन भरे दरबार में राम ने सीता को बुलवाया और उनसे इतने सालों तक राम से अलग होकर रावण के पास समय गुजारने के जुर्म में घर से निकल जाने का हुकुम सुना दिया, और लक्ष्मण को आदेश दिया कि सीता को जंगल में छोड़ आओ | सीता ने जैसे ही राम के वचन सुने वो बिफर पड़ी, ” महाराज, मैं जंगल क्यों जाऊं | रावण के पास से आने के बाद आपने मुझे ऐसे ही नहीं अपना लिया था | पहले मेरी अग्नि परीक्षा ली थी तभी मुझे अपने साथ वापस अयोध्या लाये थे | तो अग्निपरीक्षा के बाद भी आप मुझे घर से क्यों निकाल रहे हैं ? आप भी तो मुझसे इतने साल अलग रहे और घर से बाहर भी, क्या मैंने आपकी अग्निपरीक्षा ली ? क्या मैंने किसी की बात सुनी ? नहीं न ! आप तो ये सब करके पुरुषोत्तम बन गए | क्या आपको पता नहीं है कि मैं माँ बनने वाली हूँ फिर भी आप मुझे दोबारा वनवास दे रहे हैं? मैं अग्निपरीक्षा के बाद इस घर में वापस आयी हूँ, मैं नहीं जाने वाली इस घर से बाहर और मैं धरती में समाने वाली भी नहीं | राम, लक्ष्मण और सभी दरबारी सीता का मुंह देखते रह गए | और नाटक का पर्दा गिर गया | थोड़ी देर तक तो हॉल में सन्नाटा छाया रहा, जैसी किसी की कुछ समझ में ही नहीं आया | और फिर सारा हॉल वहां उपस्थित महिलाओं की तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा |
“सन्दीप कुमार”
०४/०८/२०१६