आखिर क्यों मर्द बेचारे नहीं होते?
आखिर क्यों मर्द बेचारे नहीं’ होते ”
बेचारी है महिलाएं बात-बात पर आँखें भर आती है
बड़ी जालिम है ये दुनिया ना जाने इसको कितना सताती है।
मर्द को तो दर्द होता नहीं तभी तो वो किसी के सामने रोता नहीं औरतें कर लेती है समझौता हालातों से मगर
मर्द से समझौता होता नहीं
मैं तो इस बात से सहमत नहीं हूँ, आखिर क्यों एक महिला ही बेचारी होती है? क्या बस तकलीफ उसी को होती है,
ठीक है बचपन में लाड़-प्यार ज्यादा दिया जाता है, घर का वारिश हो है वो ये बताया जाता है,
लेकिन एक उम्र आती है उसकी घर से बाहर जाने की दिन दौड़-धूप कर कमाने की
वो भूल जाता है कभी-कभी खाना भी खाना
क्योंकि उसको तो परिवार के लिए है ढेर सारा कमाना,
उसकी अपनी भी इच्छा होती हैं. और होते हैं आँखो में कुछ सपने, लेकिन उन सपनों के कारण दूर हो जाते हैं उसके अपने,
कभी थकान होती हैं कभी पलके भी रोती है
मगर खुद को कमजोर नहीं दिखाना है इसलिए उनकी बातें बस बहाने ही संजोती है
खुद संभालते है परिवार को और अपने बच्चों का बचपन खो देते हैं,
गर हल्की सी खरोंच भी आ जाए बच्चों को तो ये भी अकेले में रो देते हैं,
तब भी ये किसी भी परिस्थिति में अपना आपा नहीं खोते
दर्द तो मर्द को भी होता है,
लेकिन संभालना है सबको इसलिए ये मर्द बेचारे नहीं होते।
( रेखा खिंची)