आखिर क्यों पापा
शीर्षक:आखिर क्यों पापा
विलग होते हुए क्यो मन मे न उठे भाव कुछ
कंपकंपाइ होगी काया याद कर परिवार
मैं सोच आज भी शून्य सी असहाय सी विचलित
लहू में दौडा होगा अहसास अपना परिवार
आखिर क्यों छोड़ चले जाते हैं पापा घर परिवार
आखिर क्यों पापा..
आजभी पलकों पर सैलाब है आँसुओ का क्यो
भावनाओं को आजभी उमड़ते देखती हूँ
क्यो बिन चाही दूरियां आ गई जीवन मे
जीवन मे एक अजीब सी दूरियां हैं क्यो हुई
स्तब्ध! हूँ आज भी क्यो हुआ आखिर हमारे साथ
आखिर क्यों पापा…
खनक है आज भी आपसे मिलने की दिल मे
आवाज सी कानो में गूंजती हैं आपकी
लगता हैं अभी आवाज देकर कहोगे मुझे कि
बेटा याद आती हैं मुझें भी तेरी भुला नही हूं मैं
आज अकेलापन सताता हैं मुझे पापा
आखिर क्यों पापा…
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद