आखिरी खत
खत नहीं
ये आखिरी पैगाम था
उस प्रेमी का लिखा,
अपने प्रेयसी
यही वो अंतिम शब्द था |
पहुँच जाये उसके
प्रेयसी को ये खत,
यही उस यतीम प्रेमी
का मन था |
पहले तो खत देख हिचकिचायी
प्रेमी का नाम सुन,
खत को सीने से लगाई |
खुद नही आया मिलने
खत क्यों भेजा उसने,
ये सोच थोड़ी रिझाई |
खत पढ़ स्तब्ध हैं
अफसोस में खोयी,
आज प्रेयसी पलक हैं |
सपने दिखाये थे
जिसने हजार,
आज वो खुद
सपना बन गया हैं |
उस यतीम प्रेमी ने
समाज (बिरादरी) के सामने,
खुद को लाचार बताया हैं |
आखिरी खत का
ये आखिरी पैगाम,
आखिरी अहसास
लेकर आया हैं |
खत पढ़
उसे खुद पे हँसी आयी,
में भी पागल
किस किस्सेबाज़ से दिल लगायी |
जिसे प्रेम का मतलब
नहीं पता,
में उसे प्रेम का
मतलब सिखाने चली थी |
न प्रेम यतीम
न यतीम प्रेमी था
बस दूर होना था ,
उसे तो एक अफ़साना भी
तो जरूरी था |