*आख़िर कब तक?*
जिस देश में पूजा होती है
माँ शारदे, दुर्गे, लक्ष्मी की –
उस देश की बालाएँ
क्यूँ रहती सहमी सहमी सी –
नन्हीं बालिका हो,
किशोरी, नवयौवना हो
या हो प्रौढ़ मातृतुल्य –
इस देश में नहीं है आज
नारी की अस्मिता का कोई मूल्य –
मर्यादा की सीमा लाँघते हैं
कभी दोस्त, परिचित, रिश्तेदार –
कभी वह बनती है
वहशी दरिंदों की
हैवानियत का शिकार –
बत्तीस दाँतों के बीच ज्यों
जिह्वा को सँभालना पड़ता है –
उसी तरह भीड़-भाड़ में
लड़कियों को
बच बच कर चलना पड़ता है –
है चाँद पर जाने की शक्ति जिसमें
अंतरिक्ष सैर की क्षमता जिसमें –
है चण्डी माता की ताकत जिसमें
है मदर टेरेसा सी ममता जिसमें –
उसे निरंतर दबाने की
जाने यह कैसी साज़िश है –
समाज के ठेकेदारों से
देश के शासक और विचारक से
बस इतनी गुज़ारिश है –
कि इस गूंगे, अंधे, बहरे कानून में
कुछ ऐसी तब्दीली लायें
कि मातृशक्ति को कुचलने का साहस
कोई नर-पिशाच कर नहीं पाये –
बलात्कारियों को
कठिन से कठिनतर सज़ा दी जाये –
और हर गली-मुहल्ले, गाँव-शहर में
नारियों की समुचित सुरक्षा की जाये –
आख़िर कब तक इस देश में
निर्भया जैसी मासूमों की बलि चढ़ेगी?
आख़िर कब तक इस देश में
आधी आबादी आबाद नहीं रहेगी?