आकर्षण का नियम
आकर्षण का नियम, प्रेम का नियम कहा जाता है।
जो करता है प्रेम, प्रेम से वह सब कुछ पाता है।।
प्रेम-भाव से सराबोर जो, वह अजेय बन जाता।
उसके ऊपर वर बरसाता, उसका भाग्य-विधाता।।
यह ब्रह्माण्ड मित्रवत सबको अपना माना करता।
मित्र मान सबके अन्तस में, भाव मोद के भरता।।
प्राणिमात्र का प्रेमी, सबसे यह मित्रता निभाता।
यह अपने सारे मित्रों को, बेहद बड़ा बनाता।।
बेहद बड़े हमें बनना है, ईश्वर की राजी से।
काम हड़बड़ी में न करें हम, बचें जल्दबाजी से।।
ईश्वर की अनुकम्पा का जब, हम प्रसाद पा जाते।
तब भीतर से बाहर तक हम, हो प्रसन्न मुस्काते।।
प्रभु की परम कृपा से अनुदिन उन्नति होती जाती।
नित्य सफलता नया रूप धर, विजयमाल पहनाती।।
धन्यवाद, आभार प्रदर्शन, मित्रों ! बहुत जरूरी।
इससे झिझक दूर हो जाती, मिट जाती हर दूरी।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी