#क्या कहूँ
दृष्टि जहाँ भी जम जाती है,
होश जहाँ गुम होते हैं।
दिल का पलड़ा भारी होता,
बुद्धि सभी जन खोते हैं।
धोखा या आकर्षण कहदूँ,
या दीवानापन कहदूँ,
स्वर्ण-हिरण पर सीता के भी,
नयन स्वप्न सँजोते हैं।
इक सूरत दिल पर राज करे,
उसके बिन कुछ ना भाए।
उस बिन जग सूना-सा लगता,
देख उसे मन मुसकाए।
इसको प्रेम कहूँ या माया,
या अपरिपक्वता कहदूँ,
चंदा को देख चकोरा भी,
स्वप्न मिलन के सँजोए।
पाने को सब त्यागा जाए,
कोसों भी भागा जाए।
पर पाए बिन चैन न आए,
विरह-अग्नि घेर जलाए।
इसको साध कहूँ या चेतन,
या “प्रीतम” तप मैं कहदूँ,
कृष्ण-भक्ति में हाँ!मीरा भी,
जग में सब लाज गँवाए।
–आर.एस.प्रीतम
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