आओ वृक्ष लगाओ जी..
काव्य सर्जन गीत –
आओ वृक्ष लगाओ जी —
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एक ओर ऐसी कूलर हैं, एक ओर पौधे वाला।
ओ बाबूजी ओ बहना जी, कहता यूँ पौधे वाला-
वृक्ष हमारे पितर देवता,इनसे प्यार निभाओ जी।
घर-बाहर लहराते पौधे,शीतल छाया पाओ जी।।
शुद्ध हवा से रहो निरोगी,लाभ स्वास्थ्य में पाओ जी।
वृक्ष हमारे पितर देवता,इनसे प्यार निभाओ जी।।
प्राण वायु दें जीवन देते,जन-जन के उपकारी है।
जल,फल,पुष्प,रसोषधि दाता, मानव के सुखकारी है।।
मीठी-मीठी ताजी भाजी,रोज पकाकर खाओ जी।
वृक्ष हमारे पितर देवता,इनसे प्यार बढ़ाओ जी।।
नीम आँवला गिलोय तुलसी, बीमारी दूर भगाते हैं।
बरगद,पीपल शुद्ध हवा दे, झूम के मेघ बुलाते हैं।।
रसानंद की बरसा होती,धरती प्यास बुझाओ जी।
वृक्ष हमारे पितर देवता, इनसे प्यार निभाओ जी।।
परिमल सुरभित दिव्य हवाएँ,मन को मोहक लगती हैं।
तन-मन में तब भरें ताजगी, चुस्ती-फुर्ती लाती है।।
ऐसी कूलर बिजली का बिल, खर्चा नहीं बढ़ाओं जी।
वृक्ष हमारे पितर देवता,इनसे प्यार निभाओ जी।
✍️ सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।