आओ लौट चले
आओ लौट चले,
उन सुख से भरी वादियों में,
खेतो की छोटी छोटी सी क्यारियों में ।
बचपन की नादान किलकारियों में,
रेत में नन्हे हाथो से बनी लकीरो में ।।
त्यौहार पर बनी मिठाई,
को पाने की तरक़ीबो में ।
दिवाली पर जी भर के,
पटाखे चलाने में ।।
आता था मज़ा बारिश में,
कागज़ की कश्ती बनाने में ।
स्कूल ना जाने के लिए,
पेट दर्द का बहाना बनाने में ।।
लास्ट मिनट पर,
एग्जाम कॉपी पापा से सिग्नेचर कराने में।
छुप जाना हैं
माँ के आंचल की छाँव में।।
वो निडरता का अहसास,
पापा की बाहों में।
दादाजी के कंधे पर बैठकर,
घूमने की ख़ुशी में ।।
आओ लौट चले,
उन्ही पुरानी यादों में,
उन बचपन की ,
प्यारी प्यारी बातों में ।।
महेश कुमावत